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संक्षिप्त परिचय-अध्यक्ष

एक संक्षिप्त परिचय

स्वामी श्री ब्रह्मानन्द सरस्वती (हरिपाल रावत)

अध्यक्ष

स्वामी श्री ब्रह्मानन्द सरस्वती (हरिपाल रावत)

स्वामी श्री ब्रह्मानन्द सरस्वती (हरिपाल रावत) जी की प्रतिभा को कैसे मैं अपने शब्दों में व्यक्त करूँ ? आपकी प्रतिभा न सिर्फ बहुमुखी है, बल्कि अलौकिक है। आप न सिर्फ एक उच्चकोटि के दार्शनिक, लेखक, राजयोगस्थ संन्यासी, कवि एवं गायक हैं, बल्कि एक तपस्वी (परम योगी), कर्मयोगी, यथार्थ दृष्टा, आयुर्वेदज्ञ और नेचुरोपैथिस्ट भी हैं। आप लगभग एक दर्जन विविध विषयों पर लेखन कार्य की क्षमता रखते हैं। मात्र 21 वर्ष की अवस्था से ही आपकी दार्शनिक अभिव्यक्ति प्रखर होने लगी थी। आपने एक संन्यासी की भाँति लगभग 10 वर्ष पूरे देश का भ्रमण करते हुए न सिर्फ लोगों की समस्याओं/पीड़ाओं को आत्मसात किया है, बल्कि देश में व्याप्त समस्त अव्यवस्थाओं (चाहे वे सामाजिक हों, राजनैतिक हों, प्रशासनिक हों, न्यायिक हों या फिर धार्मिक ) को जड़ से उखाड़ फैंकने का बीड़ा भी उठा लिया है। आप स्वयं को ही स्वयं का एक मात्र गुरू मानते हैं। आपका दृढ़ उद्घोष है- ’’यथार्थ धर्म के लिए यह आवश्यक नहीं है कि धर्म गेरूआ वस्त्र धारण करे । वह विभिन्न कर्मकाण्डों एवं पूजापाठों में ही उलझा रहे। धर्म के लिए जो कुछ भी आवश्यक है, वह है- ’चरित्र’ क्योंकि धर्म की उत्पत्ति ’चरित्र’ से ही होती है। यदि आपके पास ’चरित्र’है, तो आप स्वयं ही यथार्थ धर्म हैं और तब आप जो कुछ भी सोचेंगे वही धर्म होगा, आप जो कुछ भी कहेंगे-वही धर्म होगा, आप जो कुछ भी करेंगे-वही धर्म होगा।’’

आपकी अलौकिक प्रतिभा एवं आत्मीयता से अत्यन्त प्रभावित होकर डा. आचार्य प्रभाकर मिश्र, पूर्व कुलपति-कामेश्वर सिंध दरभंगा विश्वविद्यालय बिहार, परमाध्यक्ष विश्व धर्म संसद एवं सार्वभौम सनातन धर्म महासभा नई दिल्ली ने आपको स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती की उपाधि प्रदान करते हुए राजयोग एवं अद्वैत वेदान्त का ’कार्यक्रम निदेशक तथा विश्व धर्म संसद एवं सार्वभौम सनातन धर्म महासभा नई दिल्ली का राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष मनोनीत करते हुए एक व्यापक जनचेतना अभियान चलाने का आग्रह किया था।

अपने जीवन के अन्तिम पड़ाव में आचार्य प्रभाकर मिश्र जी ने विश्व धर्म संसद को व्यापकता एवं नई दिशा देने के उद्देश्य से स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती (हरिपाल रावत) जी को विश्व धर्म संसद की कमान सौंपते हुए इस संसार से विदा हो गये।

तद्नउपरान्त, आपने न सिर्फ विश्व धर्म संसद का पुनर्गठन किया, बल्कि सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक एवं आध्यात्मिक व्यवस्थाओं पर ’आवश्यक सुधार’ प्रस्तुत करते हुए उनका आम जन मानस के मध्य प्रचार-प्रसार करने हेतु तथा देश में व्याप्त समस्त अव्यवस्थाओं को जड़ से उखाड़ फैंकने के लिए एक अति विशिष्ट ट्रस्ट- पार्लियामेंट ऑफ़ रिलीजियस एण्ड पाॅलिटिकल रिफॉर्म्स का भी गठन किया है।

आपके द्वारा लिखित बहुमूल्य पुस्तकें निम्न हैं-

  1. तर्क एवं ज्ञान का ईश्वर के साथ सम्बन्ध
  2. ध्यान की कुछ विधियाॅ एवं मनुष्य जाति पर उनका प्रभाव
  3. मृत्यु के बाद जीवन और आत्म जगत
  4. दुःख, दुःख के कारण व निवारण
  5. क्या हम मनुष्य हैं ?
  6. Data interpretation & sufficiency
  7. The Art of speaking English
  8. Man & his sexual Activities and their effect on the Nature.
  9. A text of Syntax
  10. एक पूर्ण विद्यार्थी एवं सफल प्रतियोगी कैसे बनें ?
  11. प्राथमिक गणित एवं तार्किक अभिरूचि
  12. व्यक्तित्व विकासः अभिप्राय एवं उपाय
  13. सीक्रेट ऑपरेशन्स, अ रीडिंग मूवी
  14. सोचा है कभी आपने, अ रीडिंग मूवी
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